Monday, April 29, 2024
चिंदु भागवतमः लोक नाटक/ डॉ. वेद प्रकाश भारद्वाज
लोक नाटकों की परंपरा में तेलंगाना का चिंदु भागवतम अपने कथानक के साथ ही प्रस्तुति के लिए भी विख्यात है। यक्षगान शैली की विशेषताओं वाला यह लोक नाटक अब गांवों की परिधि लांघकर शहरी रंगमंच तक पहुंच गया है। इसमें अब श्रीकृष्ण की लीलाओं के साथ ही आधुनिक संदर्भ भी प्रस्तुत किये जाने लगे हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक पक्ष से अलग उनका एक कला रूप भी है। भागवत उनकी ऐसी कथा है जो भारत के लगभग सभी राज्यों में आंशिक परिवर्तन के साथ प्रचलित है। भागवत सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, वह जीवन के व्यावहारिक ज्ञान का स्रोत भी है। यही कारण है कि वह लोक कलाओं का आधार भी है। अनेक शास्त्रीय नृत्यों के साथ ही लोक कलाओं में भी भागवत की कथाओं पर आधारित प्रस्तुतियां होती हैं। चिंदु भागवतम ऐसी ही एक नाट्य कला है जो तेलंगाना से शुरु होकर देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच चुकी है। इसका एक नाम विथि भागवतम भी है। मूलतः गांवों में खुले आकाश के नीचे होने वाला यह नाटक आजकल मंच पर भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। चिंदु भागवतम मूलतः भागवत कथा को कहने का एक ऐसा रूप है जिसमें नाटक के साथ ही नृत्य और संगीत भी शामिल है। तेलंगाना में इस कला का विकास मडिगा समुदाय ने किया। दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित कट्टाईकुट्टू, तेरुक्कुट्टू, यक्षगानम आदि लोक नाटकों का आधार भी भागवत ही होती है। इसीलिए इन सभी नाट्य रूपों में समानता भी दिखाई देती है। चिंदु भागवतम को तो यक्षगानम का ही लोक रूप माना जाता है। इसका मंचन बगैर किसी मंच के भी किया जाता है। अक्सर कलाकार किसी गांव में पेड़ के नीचे खुले में इसका प्रदर्शन करते हैं।
मडिगा समुदाय अनुसूचित जाति में आता है, पर वह भी दो भाग में विभाजित है। एक वर्ग 'पेद्दा मडिगा' है जो अपेक्षाकृत उच्च वर्ग का माना जाता है और दूसरा 'चिन्ना मडिगा' जिसे निम्नवर्गीय माना जाता है। चिन्ना मडिगा यक्षगान करते हुए भिक्षा से जीवन यापन करते रहे हैं। इस वर्ग ने चिंदु भागवतम को एक लोकप्रिय नाट्य शैली के रूप में विकसित किया। शुरु में चिंदु भागवतम की प्रस्तुति अपने समुदाय से बाहर करने की अनुमति नहीं थी। पर समय के साथ सामाजिक संरचना में बदलाव आया और दूसरे समाजों, शहरी और ग्रामीण दोनों, में इस नाट्य प्रस्तुति की प्रतिष्ठा बढ़ने के बाद इसका विस्तार हुआ। इतना ही नहीं, मडिगा समुदाय के बाहर के लोग भी इसे मंचित करने लगे। इससे पारंपरिक प्रस्तुति का रूप बदलने लगा। उसमें आधुनिक कथानकों का भी समावेश होने लगा।
मडिगा समुदाय धीरे-धीरे कृषि मजदूर बन गया। सरकारी प्रयासों से भी उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया। सरकार ने इस लोक नाटक को अपने कार्यक्रमों का हिस्सा बनाना शुरु कर दिया। इससे कलाकारों को कुछ आर्थिक राहत मिली। फिर भी उनके सामने हमेशा आजीविका का संकट बना रहता है। इसी कारण अब इसे करने वाले कलाकार कम होते जा रहे हैं। मडिगा समुदाय से बाहर के कई लोग इसे करने लगे हैं। यह सब पेशेवर कलाकार हैं। इसके कारण मडिगा समुदाय के कलाकारों के सामने एक नयी समस्या उत्पन्न हो गयी है। कई मडिगा कलाकारों ने अपनी मंडली बना ली है जिसमें वह नये कलाकारों को प्रशिक्षण भी देते हैं। आज करीब 800 कलाकार हैं जो इस लोक कला को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।
तेलुगु में 'चिंदु' शब्द का अर्थ 'छलांग' है। इस नाटक की प्रस्तुति में कलाकार छलांग लगाते हैं, इसीलिए इसका नाम चिंदु भागवतम हो गया। इसमें सुनाई जाने वाली ज्यादातर कहानियां भागवत पुराण से ही होती हैं। चिन्ना मडिगा खुद को जांबा महामुनि का वंशज मानते हैं। इसीलिए वह इस नाटक की शुरुआत जंबा पुराण से करते हैं। इधर कई लेखकों ने इस नाट्य प्रस्तुति के लिए सामयिक विषयों को लेकर भी कथानक रचे हैं। इस नाटक को करने वाले ज्यादातर कलाकार अशिक्षित थे पर अब उनमें से कई ने प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से अक्षर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। इस नाट्य कला में मेकअप के साथ ही गायन और वादन का भी अत्यधिक महत्व है। अक्सर कलाकार ही सारी भूमिकाएं निभाते हैं। इसलिए प्रत्येक कलाकार को मेकअप के साथ ही वादन व गायन भी सीखना जरूरी होता है। चिंदु भागवतम में मुख्यरूप से हारमोनियम, झांझ और ढोलक जैसे संगीत वाद्ययंत्र बजाने का चलन रहा है। आजकल कई दूसरे वाद्ययंत्रों का प्रयोग भी होने लगा है।
सभी चित्र गुगल से साभार
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